Original Tulsi Japa Mala (तुलसी जप माला)

Original Tulsi Japa  Mala (तुलसी जप माला)
Original Tulsi Mala Store
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Tulsi Japa Mala

तुलसी जप माला
जो व्यक्ति तुलसीकाष्ठ की माला मुझे भक्तिपूर्वक निवेदित करके फिर प्रसाद रूप से उसको स्वंय धारण करता है, उसके पातकों का नाश हो जाता है और उसके ऊपर मैं सदैव प्रसन्न रहता हूँ। जिसके घर में तुलसी का काष्ठ अथवा तुलसी का हरा या सूखा पत्ता रहता है, उसके घर में कलियुग का पाप नहीं फैलता। इसलिये तुलसी की माला को प्रयत्नपूर्वक
धारण करना चाहिये।
श्रीचैतन्य महाप्रभु के अनुयायी सदैव कृष्णभक्ति में परायण होते हैं। ऐसे कृष्णभक्तों का कंठ में तुलसी माला धारण करना एवं तुलसी निर्मित माला पर जप करना परम कर्तव्य हैं।

श्रीमान् महाप्रभु के अनुयायी सदैव,
“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। " का उच्चारण नियमित रूप से करते हैं। इसी भगवद्नाम के उच्चारण को तुलसी माला पर करने का विधान श्रीहरिभक्तिविलास, क्रमदिपिका एवं गौतमीय तंत्र में प्राप्त होता है।
तुलसी काष्ठ से निर्मित माला 108 मनकों से बनती है। उसमें एक विशेष मनका सुमेरू नाम से निर्देशित किया गया है।

सुमेरू : युगलं रूपं पार्श्वेष्ठ सखी तथा ।
चतुः षष्टि गोपिकाञ्च द्वात्रिंशंद गोपबालकाः ||
वीरा वृन्दा पौर्णमासी गोपीश्वर समन्वितम्।
एवं क्रमेण माला स्यात् शतमष्टोतरं क्रमात् ।।

“ अर्थात सुमेरू मणि श्रीश्रीराधाकृष्ण का युगल स्वरूप है। माला पर जप करते समय इस विशिष्ट सुमेरूमणि का उल्लंघन करना अनुचित है। माला के एक (बड़ा मनका) ओर से आरम्भ करने से सर्वप्रथम ललितादि अष्ट सखीवृंद एवं हर सखी की आठ-आठ सखियाँ, मिलकर चौसष्ठ हो जाती हैं। फिर भगवान् कृष्ण के बत्तीश गोप - सखागण एवं वीरादूती, वृन्दादूती, पौर्णमासी और गोपीश्वर महादेव इस प्रकार से 108 मनके एक तुलसी माला के समझने चाहिये। "
सुमेरु मनके में सूत्ररूप में श्रीमती राधारानी तप्तकाञ्चन वर्णयुक्त, नीलवस्त्रों से युक्त वाम्यभाव में विराजमान है। माला के ग्रन्थिरूप में श्रीकृष्ण नवीन नीरद वर्ण के पीताम्बरधारी धीर ललित स्वरूप में विराजमान हैं। इस प्रकार से तुलसीमाला में 108 व्यक्तित्व निवास करते हैं। साधक को विशुद्ध भावना से तुलसीमाला की रक्षा हेतु उसे थैली या झोली में ही व्यवहार में लाना चाहिये। श्रीगुरु के चरणों का आश्रय ग्रहण करने के पश्चात् उनके द्वारा प्रदत्त तुलसी माला पर प्रतिदिन 'हरे कृष्ण महामंत्र का जप करना शिष्य का परम कर्तव्य है।

The person who offers me a Tulsi wood garland with devotion and then wears it himself as a prasadam, his sins are destroyed and I am always pleased with him. The sins of Kaliyug do not spread in the house of the person who has Tulsi wood or green or dry Tulsi leaves in his house. Therefore, Tulsi garland should be worn with care.

The followers of Sri Chaitanya Mahaprabhu are always devoted to Krishna Bhakti. It is the supreme duty of such Krishna devotees to wear Tulsi beads around their neck and chant on Tulsi beads.

The followers of Sriman Mahaprabhu always chant,

“Hare Krishna Hare Krishna Krishna Krishna Hare Hare. Hare Ram Hare Ram Ram Ram Hare Hare. " is regularly recited.

The method of reciting this Bhagwadnaam on Tulsi rosary is found in Shri Hari Bhakti Vilas, Kramadipika and Gautamiya Tantra.

A rosary made of Tulsi wood is made of 108 beads. A special bead in it is named Sumeru.

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