तुलसी देवी का परिचय

तुलसी देवी का परिचय
भारत के प्रत्येक घर के आंगन में ये दिव्य वृक्ष पाया जाता है। बचपन से हर माता-पिता अपने बालकों को इनको प्रणाम करने की शिक्षा प्रदान करते हैं। शास्त्रों ने जीवन के प्रत्येक क्षण के साथ तुलसी को बांध दिया है। 'तुलसी' उसे कहते हैं जो ‘बेजोड़' अद्वितीय और 'अनुपमेय' हैं। संस्कृत में वर्णन प्राप्त होता है- 'तुलां सादृश्यं स्यति नाशयतीति तुलसी : ' 'तुलसी' का अर्थ है- वह जिसकी तुलना इस संसार में न हो सके, जो तुलना के मापदण्ड को ही तोड़ दे।
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'तुलसी' इस नाम के बारे में कई ग्रन्थों में वर्णन आता है, जैसे 'देवी भागवत' में कहा गया है, 'यस्या देव्यास्तुला नास्ति विश्वेषु चाखिलेषु च । तुलसी तेन विख्याता' अर्थात् संसार-भर में इस तुलसी देवी की जोड़ (तुलना ) का कोई नहीं है, इसीलिए इसका नाम 'तुलसी' रखा गया है।' ब्रह्मवैवर्तपुराण में कहा गया है, नरा नार्यश्च तां दृष्ट्वा तुलनां दातुमक्षमाः । तेन नाम्ना च तुलसीं तां विदन्ति पुराविदः।। अर्थात् जब यह (तुलसी) प्रकट हुई तो स्त्री-पुरुष कोई भी किसी से भी इसकी तुलना न कर सका, और न ही स्वयं इसकी तुलना (बराबरी) में ठहर सका, इसलिए यह 'तुलसी' कहलायी।
ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है।
पुष्पेषु तुलनाप्यस्य नासीद् देवीषु वा मुने ।
पवित्ररूपा सर्वासु तुलसी सा च कीर्तिताः ।।
" हे मुनि! सभी पुष्प समूहों में एवं सभी देवियों में जिनकी कोई तुलना नहीं हैं, इसी कारण से समस्त पुष्प एवं देवियों में पवित्र रूपवाली इस देवी को 'तुलसी' कहकर वर्णित किया गया है। "
'बृहद्धर्मपुराण' का कथन है-
तकारो मरणं प्रोक्तं तद्योगः स्यादुकारतः ।
मृता 'लसति' सेत्येवं 'तुलसी' त्येव गीयते ।।
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